बदगुमानी से बचकर रहनुमाओं से ऐतमाद वक़्त व हालात का तक़ाज़ा. क़ाज़ी ए शहर

बदगुमानी से बचकर रहनुमाओं से ऐतमाद वक़्त व हालात का तक़ाज़ा. क़ाज़ी ए शहर 


.सहारा टुडे कानपुर


मो आसिफ क़ुरैशी


 


रहनुमाओं से बद गुमानी रखने  वाली क़ौम कभी भी मसाइल से नजात व तरक़्क़ी का ख्वाब पूरा नहीं कर सकती इस लिए वक़्त व हालात का तक़ाज़ा है मिल्लत ए इस्लामिया अपने रहनुमाओं से बदगुमानी के बजाय उन पर ऐतमाद रखे और कंधे से कन्धा मिलाकर के मिशन के तहत आगे बढे इन ख्यालात का इज़हार क़ाज़ी ए शहर कानपुर हाफ़िज़ अब्दुल क़ुद्दूस साहब हादी ने सोमवार  को जारी अपने अखबारी  बयान में  करते हुए कहा क़ाइद मिल्लत हज़रत मौलाना सय्यद अरशद मदनी सदर जमीयत उलमा ए हिन्द की आरएसएस के सरबराह मोहन भागवत जी से मुलाक़ात को मुल्क व मिल्लत के लिए रौशनी क़रार दिया है. 
 क़ाज़ी ए शहर ने मुल्क में बढ़ती हुई फ़िरक़ा वाराना नफरतों के खात्मे के लिए सभी मज़ाहिब के लोगों में प्यार व मुहब्बत के  फरोग और और तरक़्क़ी व खुशहाली के लिए आरएसएस सरबराह से मुलाक़ात की एक अच्छी पहल की लेकिन कुछ लोग जो दूर अंदेशी से काम लेने के बजाय क़ाइद मिल्लत की इस मुलाक़ात को लेकर के तमाम मुसलमानों में बदगुमानी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैँ ऐसे में आम मुसलमानों की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाती है की वह अपनी मिली रहनुमाओं से किसी क़िस्म की गलत फेहमी या बदगुमानी का शिकार होने के बजाय उनकी कारकर्दगी और अल्लाह की जात पर मुकम्म्ल भरोसा रखे इस लिए की तारीख़ गवाह है अपने रहनुमाओं से बदगुमान होने वाली क़ौम कभी भी मसाइल से नजात और तरक़्क़ी का ख्वाब पूरा नहीं कर सकती हैँ. उन्हों ने कहा मिली रहनुमाओं से बदगुमानी के बजाय उनके एक़दाम पर ऐतमाद बहाल रखे और कंधे से कन्धा मिलाकर के मुल्क व मिल्लत के मुफाद में उठाए गए मिशन को कामियाब बनाने में अपनी हिस्से दरी निभाए. 
काज़िए शहर ने मज़ीद कहा खुद आरएसएस के तंजिमि ढांचे का मुताला करें  तो उसकी कामियाबी व मज़बूती का राज अपने रहनुमाओं पर मुकम्मल ऐतमाद में नज़र आएगा आजादी के बाद मंसूबा बंद साज़िश के तहत मुस्लिम आवाम को मिली रहनुमाओं के मुताल्लिक़ बदज़न करने का खेल शरू हुआ जिनका शिकार होकर के मुसलमान मुसलसल  अपने रहनुमाओं से बदगुमानी के तहत इनके अच्छे कामों को भी नकारते हैँ और इसका नतीजा हैँ की आज मुस्लिम समाज हर शोबे पस्ती के दलदल में फसता चला जा रहा हैँ मुल्की ऐतबार से मुसलमानों को दरपेश मसाइल से नजात हासिल कर तरक़्क़ी का ख्वाब पूरा करने के लिए अपने रहनुमाओं से बदगुमानी की साज़िश से बाहर निकल कर उनके मिशन को मज़बूत बनाना होगा. 
जो लोग मिल्ली रहनुमाओं के मुताल्लिक़ बदगुमानी का माहौल पैदा कर रहे हैँ वह मुसलमानों के हमदर्द नहीं बल्कि उसी साज़िश का हिस्सा बन रहे हैँ जिसके तहत आजादी के बाद मिल्लत इस्लामिया मुसलसल पस्ती के दलदल में  फस्ती चली गाई इस लिए वक़्त और हालात का तक़ाज़ा है के मुस्लमान अपने दुश्मनों की  साज़िशों व चालों को भी समझें और अपने रहनुमाओं के मिलली मुफाद में उठाये गए क़दम की भी पहचान कर उसको मज़बूत बनाने की कोशिश करें तभी मिल्लत इस्लामिया को दरपेश मसाइल से नजात और तरक़्क़ी का ख्वाब पूरा हो सकता है.